एक कहानी अनुभव और उम्र की..

कहते हैं उम्र बड़ी चीज होती है, लेकिन यह एक जरुरी सत्य हो यह भी जरुरी तो नहीं। कई बार और ज्यादातर बार देखने में तो यही आता है कि छोटी उम्र वाला भी कुछ ऐसा कर जाता है जहां बड़े उम्र वाले पहुंच भी नहीं पाते।

शायद इसलिए ग्राम्सी ने पिर्सनर्स नोट में लिखा है कि  ज्ञान किसी भी विश्वविद्यालयों और कंंक्रीट के बड़े-बड़े इमारतों में ग्रहण की जा सकने वाली वस्तु नहीं है। उन्होंने अनुभव के आधार पर, जीवन के ठोस, पके धरातल पर सृजित ज्ञान को ज्यादा महत्व दिया था और इसे ऑरगेनिक इंटलेक्चुअलिटी का नाम दिया.. अक्षय गुप्ता इस कहानी के लेखक हैं। जमीनी अनुभवों में झुलसने वाला एक शख्स जब कहानी लिखता है तो जरुरी नहीं कि उसमें कहानी के पांच तत्वों को खोजा जाय…कहा जाने वाला सच ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।

एक वयस्क व्यक्ति, जो अपने जीवन के कई पड़ाव शहरी व्यवस्था और उसकी चुनौतियों में अपने को निपुण कर ,अपने को स्थापित रखने के लिए जरुरी जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत मेहनत से सफलता के पायदान चढ़ता है । इस सफलता के बीच अपने परिवार के साथ इस मेहनत से अर्जित सफलता का कुछ समय अपने परिवार के साथ एक सुदूर स्थल जो वन के नजदीक था वहां की यात्रा करता है ।
अनुभवशील व्यक्ति अपने शहरी अनुभव युक्त परिवार के साथ जंगल का भ्रमण करने निकलता है, स्थानीय व्यक्तियों द्वारा स्थानीय व्यक्ति को अपने साथ ले जाने को दिए गए सुझाव को सरे से नकार देता है ।
सुहावना मौसम, पहाड़ी नदी की कल-कल, जंगल की शीतल,स्वच्छ हवा, बच्चों का कौतहुल और जिज्ञासा परिवार को समय और स्थान का आभास नहीं होने देती ।
ढलता सूरज, एक पारिवारिक सेल्फ़ी का मौका और फिर
व्यक्ति अपने शहरी अनुभव के आधार पर परिवार को वापस चलने के लिए कहता है, बच्चों की भी थकान उन्हें आसानी से वापसी की तरफ मोड़ देती है |
चंद पल और, फिर पहाड़ी इलाका का गहराता अंधेरा, शहरी अनुभवी व्यक्ति इस सघन जंगल में फ़ैल चुके अँधेरे में वापिसी का रास्ता भूल चूका होता है ।
घबराये परिवार को इस अंधेरे जंगल में अब भयभीत कर देने वाली आवाज़ें सुनाई देने लगती है, पेड़ों के पीछे सरसराहट महसूस होती है। व्यक्ति अपने परिवार को अपने पास रखता हुआ किसी रोशनी की तलाश करने लगता है। कल-कल करते पानी की आवाज के साथ अब जानवरों की भी आवाज़ें साफ़ होती जा रही है। बच्चों और पत्नी को ढांढस बाधने की कोशिश कर रहा शहरीकरण का अनुभवी व्यक्ति खुद अपना धैर्य खो कर कुछ अनर्थ की आशंका में घिर चूका है ।
तभी उसे अपने पास किसी जानवर के झुण्ड के बढ़ने का अहसास होता है, काँपता हुआ व्यक्ति अपने भरभराये गले से जोर से आवाज देता है …
कुछ क्षणों बाद कुछ दुरी से एक बच्चे की आवाज आती है , जब वो चारों तरफ घूम के उस आवाज की दिशा में देखने की कोशिश करता है तो दूर से उसे कुछ रोशनी दिखाई देती है । थोड़ी पलों बाद एक 14-15 साल का बच्चा अपने एक हाथ में पिद्दी सी कुल्हाड़ी और दूसरे हाथ में LED की छोटी सी टोर्च की टिमटिमाती रोशनी में इस परिवार के पास खड़ा पिर परिवार को मुस्करा के देख कर पूछता है – क्या हुआ बाबूजी ..?? जंगल में खो गए है क्या ? और व्यक्ति के उत्तर का प्रतिक्षा किये बिना बोलता है
चलिए कुछ आगे ही चलना है, ज्यादा देर नहीं लगेगा ।
व्यक्ति अवाक हो उसकी तरफ देखता है और बिना कुछ कहे उस कम उम्र बच्चे के पीछे पीछे अपने शहरी अनुभव को लिए चल पड़ता है ।

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